भगवत गीता के अनमोल वचन

श्रीमद्भगवद्‌गीता हिन्दुओं के पवित्र ग्रन्थों में से एक है, श्रीमद्भगवद्गीता  एक ऐसा  ग्रंथ है, जिसमे जीवन जिनका  का पूरा सार दिया हुआ है. मनुष्य के जन्म से लेकर मृत्यु के बाद के चक्र को श्रीमद्भगवद्गीता में विस्तार से बताया गया है. मनुष्य जीवन के सांसारिक मोह ,माया  से निकलकर  मोक्ष की प्राप्ति करने का सूत्र श्रीमद्भगवद्गीता में दिए गए  है. महाभारत के अनुसार कुरुक्षेत्र युद्ध में श्री कृष्ण ने जो  सन्देश अर्जुन को सुनाया था। तो चलिए दोस्तों जानते हैं भगवत गीता के कुछ अनमोल विचारों  को जो श्री कृष्ण द्वारा अर्जुन को दिए गए थे।

गीता के 121 अनमोल वचन

सदैव संदेह करने वाले व्यक्ति के लिए प्रसन्नता ना इस लोक में है ना ही कहीं और।

मनुष्य का मन सदैव से चंचल रहा है , इस मन की चंचलता ने मनुष्य को पथभ्रष्ट तथा मार्ग से विचलित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। जो व्यक्ति अपने मन को नियंत्रण में नहीं रखता , वह धीरे-धीरे स्वयं का शत्रु बन जाता है।

क्रोध से भ्रम पैदा होता है। भ्रम से बुद्धि व्यग्र होती है। जब बुद्धि व्यग्र होती है तब तर्क नष्ट हो जाता है। जब तर्क नष्ट होता है तब व्यक्ति का पतन हो जाता है।

मनुष्य के दुख का कारण उसका प्रेम ही है,वह जितना अधिक मोह करेगा उतना ही अधिक कष्ट भी भोगेगा |

मनुष्य को केवल अपने कर्म पर ही विश्वास करना चाहिए, कर्म श्रेष्ठ होगा तो फल भी वैसा प्राप्त होगा |

मन की गतिविधियों, होश, श्वास और भावनाओं के माध्यम से भगवान की शक्ति सदा तुम्हारे साथ है; और लगातार तुम्हे बस एक साधन की तरह प्रयोग कर के सभी कार्य कर रही है।

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ज्ञानी व्यक्ति ज्ञान और कर्म को एक रूप में देखता है, वही सही मायने में देखता है।

जो मन को नियंत्रित नहीं करते उनके लिए वह शत्रु के समान कार्य करता है।

ईश्वर ही भूत, वर्तमान और भविष्य के सभी प्राणियों को जानता हूँ, किन्तु वास्तविकता में उस परमात्मा को कोई नहीं जानता |

अपने अनिवार्य कार्य करो, क्योंकि वास्तव में कार्य करना निष्क्रियता से बेहतर है।

आत्म-ज्ञान की तलवार से काटकर अपने ह्रदय से अज्ञान के संदेह को अलग कर दो। अनुशाषित रहो। उठो।

भगवत-गीता-के-अनमोल-वचन-1

मनुष्य अपने विश्वास से निर्मित होता है। जैसा वो विश्वास करता है वैसा वो बन जाता है।

श्रीमद् भगवद् गीता के अनमोल वचन: नर्क के तीन द्वार हैं: वासना, क्रोध और लालच।

इस जीवन में ना कुछ खोता है ना व्यर्थ होता है।

Geeta updesh quotes

स्वर्ग प्राप्त करने और वहां कई वर्षों तक वास करने के पश्चात एक असफल योगी का पुन: एक पवित्र और समृद्ध कुटुंब में जन्म होता है |

इसमें कोई शक नहीं है कि जो भी व्यक्ति मुझे याद करते हुए मृत्यु को प्राप्त होता है वह मेरे धाम को प्राप्त होता है.

मन अशांत है और उसे नियंत्रित करना कठिन है, लेकिन अभ्यास से इसे वश में किया जा सकता है।

लोग आपके अपमान के बारे में हमेशा बात करेंगे। सम्मानित व्यक्ति के लिए, अपमान मृत्यु से भी बदतर है।

प्रबुद्ध व्यक्ति के लिए, गंदगी का ढेर, पत्थर और सोना सभी समान हैं।

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निर्माण केवल पहले से मौजूद चीजों का प्रक्षेपण है।

व्यक्ति जो चाहे बन सकता है यदी वह विश्वास के साथ इच्छित वस्तु पर लगातार चिंतन करे।

उससे मत डरो जो वास्तविक नहीं है, ना कभी था ना कभी होगा। जो वास्तविक है, वो हमेशा था और उसे कभी नष्ट नहीं किया जा सकता।

ज्ञानी व्यक्ति को कर्म के प्रतिफल की अपेक्षा कर रहे अज्ञानी व्यक्ति के दीमाग को अस्थिर नहीं करना चाहिए।

हर व्यक्ति का विश्वास उसकी प्रकृति के अनुसार होता है।

धरती पर मनुष्य का जन्म किसी विशेष उद्देश्य के लिए होता है,और जो उस कर्म से वंचित रहता है,उसे मोक्ष नहीं मिल पाता है |

जन्म लेने वाले के लिए मृत्यु उतनी ही निश्चित है जितना कि मृत होने वाले के लिए जन्म लेना। इसलिए जो अपरिहार्य है उस पर शोक मत करो।

अप्राकृतिक कर्म बहुत तनाव पैदा करता है।

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सभी अच्छे काम छोड़ कर बस भगवान में पूर्ण रूप से समर्पित हो जाओ। मैं तुम्हे सभी पापों से मुक्त कर दूंगा। शोक मत करो।

हमारे बुरे होने का कारण और हमारे दुख कारण हम खुद ही है |

किसी और का काम पूर्णता से करने से कहीं अच्छा है कि अपना काम करें, भले ही उसे अपूर्णता से करना पड़े।

मैं उन्हें ज्ञान देता हूँ जो सदा मुझसे जुड़े रहते हैं और जो मुझसे प्रेम करते हैं।

मैं सभी प्राणियों को सामान रूप से देखता हूँ; ना कोई मुझे कम प्रिय है ना अधिक। लेकिन जो मेरी प्रेमपूर्वक आराधना करते हैं वो मेरे भीतर रहते हैं और मैं उनके जीवन में आता हूँ।

प्रबुद्ध व्यक्ति सिवाय ईश्वर के किसी और पर निर्भर नहीं करता।

मेरी कृपा से कोई सभी कर्तव्यों का निर्वाह करते हुए भी बस मेरी शरण में आकर अनंत अविनाशी निवास को प्राप्त करता है।

हे अर्जुन, केवल भाग्यशाली योद्धा ही ऐसा युद्ध लड़ने का अवसर पाते हैं जो स्वर्ग के द्वार के सामान है।

भगवान प्रत्येक वस्तु में है और सबके ऊपर भी।

श्रीकृष्ण कहते हैं मैं सभी प्राणियों के ह्रदय में विद्यमान हूँ |

बुद्धिमान व्यक्ति कामुक सुख में आनंद नहीं लेता।

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आपके सार्वलौकिक रूप का मुझे न प्रारंभ न मध्य न अंत दिखाई दे रहा है।

जो कार्य में निष्क्रियता और निष्क्रियता में कार्य देखता है वह एक बुद्धिमान व्यक्ति है।

मैं धरती की मधुर सुगंध हूँ। मैं अग्नि की ऊष्मा हूँ, सभी जीवित प्राणियों का जीवन और सन्यासियों का आत्मसंयम हूँ।

तुम उसके लिए शोक करते हो जो शोक करने के योग्य नहीं हैं, और फिर भी ज्ञान की बाते करते हो। बुद्धिमान व्यक्ति ना जीवित और ना ही मृत व्यक्ति के लिए शोक करते हैं।

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कभी ऐसा समय नहीं था जब मैं, तुम, या ये राजा-महाराजा अस्तित्व में नहीं थे, ना ही भविष्य में कभी ऐसा होगा कि हमारा अस्तित्व समाप्त हो जाये।

कर्म मुझे बांधता नहीं, क्योंकि मुझे कर्म के प्रतिफल की कोई इच्छा नहीं।

हे अर्जुन! हम दोनों ने कई जन्म लिए हैं। मुझे याद हैं, लेकिन तुम्हे नहीं।

वह जो वास्तविकता में मेरे उत्कृष्ट जन्म और गतिविधियों को समझता है, वह शरीर त्यागने के बाद पुनः जन्म नहीं लेता और मेरे धाम को प्राप्त होता है।

अपने परम भक्तों, जो हमेशा मेरा स्मरण या एक-चित्त मन से मेरा पूजन करते हैं, मैं व्यक्तिगत रूप से उनके कल्याण का उत्तरदायित्व लेता हूँ।

कर्म योग वास्तव में एक परम रहस्य है।

कर्म उसे नहीं बांधता जिसने काम का त्याग कर दिया है।

इस दुनिया में कर्मयोग ही वास्तव में श्रेष्ठ रहस्य है |

बुद्धिमान व्यक्ति को समाज कल्याण के लिए बिना आसक्ति के काम करना चाहिए।

जो व्यक्ति आध्यात्मिक जागरूकता के शिखर तक पहुँच चुके हैं, उनका मार्ग है निःस्वार्थ कर्म। जो भगवान् के साथ संयोजित हो चुके हैं उनका मार्ग है स्थिरता और शांति।

यद्द्यापी मैं इस तंत्र का रचयिता हूँ, लेकिन सभी को यह ज्ञात होना चाहिए कि मैं कुछ नहीं करता और मैं अनंत हूँ।

जब वे अपने कार्य में आनंद खोज लेते हैं तब वे पूर्णता प्राप्त करते हैं।

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वह जो सभी इच्छाएं त्याग देता है और “मैं” और “मेरा” की लालसा और भावना से मुक्त हो जाता है उसे शांती प्राप्त होती है।

युद्ध भूमि में अर्जुन श्रीकष्ण से कहते हैं | 

 

यह बड़े शोक की बात है कि हम लोग बड़ा भारी पाप करने का निश्चय कर बैठते हैं, तथा राज्य और सुख के लोभ से अपने स्वजनों का नाश करने को तैयार हैं।

तब श्रीकृष्ण भगवान अर्जुन से कहते हैं…

 

हे अर्जुन विषम परिस्थितियों में कायरता प्राप्त करना श्रेष्ठ मनुष्यों के आचरण के विपरीत है। न तो स्वर्ग की प्राप्ति है और न ही इससे कीर्ति प्राप्त होगी।

हे अर्जुन तुम ज्ञानियों की तरह बात करते हो, लेकिन जिनके लिए शोक नहीं करना चाहिए, उनके लिए शोक करते हो। मृत या जीवित, ज्ञानी किसी के लिए शोक नहीं करते।

जैसे इसी जन्म में जीवात्मा बाल, युवा और वृद्ध शरीर को प्राप्त करती है। वैसे ही जीवात्मा मरने के बाद नया शरीर प्राप्त करती है।इसलिए वीर पुरूष को मृत्यु ने नहीं घबराना चाहिए।

न यह शरीर तुम्हारा है, न तुम शरीर के हो। यह अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी, आकाश से मिलकर बना है और इसी में मिल जाएगा। परन्तु आत्मा स्थिर है। फिर तुम क्या हो?

आत्मा अजर अमर है। जो लोग इस आत्मा को मारने वाला यह मरने वाला मानते हैं वे दोनों की नासमझ हैं। आत्मा न किसी को मारती है और न ही किस के द्वारा मारी जा सकती है।

आत्मा न कभी जन्म लेती है और न मरती है। शरीर का नाश होने पर भी इसका नाश नहीं होता।

तुम अपने आपको भगवान को अर्पित करो। यही सबसे उत्तम सहारा है, जो इसके सहारे को जानता है वह भय, चिन्ता, शोक से सर्वदा मुक्त रहता है।

जैसे मनुष्य अपने पुराने वस्त्रों को उतारकर दूसरे नए वस्त्रों धारण करता है, वैसे ही जीव मृत्यु के बाद अपने पुराने शरीर को त्यागकर नया शरीर प्राप्त करता है।

शस्त्र इस आत्मा को काट नहीं सकते, अग्नि इसको जला नहीं सकती। जल इसको गीला नहीं कर सकता। वायु इसे सूखा नहीं कर सकती।

मेरे लिए ना कोई घृणित है ना प्रिय। किन्तु जो व्यक्ति भक्ति के साथ मेरी पूजा करते हैं, वो मेरे साथ हैं और मैं भी उनके साथ हूँ।

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जो इस लोक में अपने काम की सफलता की कामना रखते हैं वे देवताओं का पूजन करें।

मैं ऊष्मा देता हूँ, मैं वर्षा करता हूँ और रोकता भी हूँ, मैं अमरत्व भी हूँ और मृत्यु भी।

बुरे कर्म करने वाले, सबसे नीच व्यक्ति जो राक्षसी प्रवित्तियों से जुड़े हुए हैं, और जिनकी बुद्धि माया ने हर ली है वो मेरी पूजा या मुझे पाने का प्रयास नहीं करते।

जो कोई भी जिस किसी भी देवता की पूजा विश्वास के साथ करने की इच्छा रखता है, मैं उसका विश्वास उसी देवता में दृढ कर देता हूँ।

मनुष्य को परिणाम की चिंता किए बिना, लोभ- लालच बिना एवं निस्वार्थ और निष्पक्ष होकर अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए।

क्रोध से भ्रम पैदा होता है, भ्रम से बुद्धि व्यग्र होती है, जब बुद्धि व्यग्र होती है तब तर्क नष्ट हो जाता है। जब तर्क नष्ट होता है तब व्यक्ति का पतन हो जाता है।

मनुष्य को जीवन की चुनौतियों से भागना नहीं चाहिए और न ही भाग्य और ईश्वर की इच्छा जैसे बहानों का प्रयोग करना चाहिए।

मनुष्य को अपने कर्मों के संभावित परिणामों से प्राप्त होने वाली विजय या पराजय, लाभ या हानि, प्रसन्नता या दुःख इत्यादि के बारे में सोच कर चिंता से ग्रसित नहीं होना चाहिए।

कर्म के बिना फल की अभिलाषा करना, व्यक्ति की सबसे बड़ी मूर्खता है।

अपने अनिवार्य कार्य करो, क्योंकि वास्तव में कार्य करना निष्क्रियता से बेहतर है।

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